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अनुभूति में मनोज झा की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
इस तरफ से जीना
तासीर

रात्रिमध्ये
विवश

 

इस तरफ से जीना

यहाँ तो मात्र प्यास-प्यास पानी, भूख-भूख अन्न
और साँस-साँस भविष्य
वह भी जैसे-तैसे धरती पर घिस-घिसकर देह
देवताओं, हथेली पर थोड़ी जगह
खुजलानी हैं वहाँ लालसाओं की पाँखें
शेष रखो चाहे पाँव से दबा अपने बुरे दिनों के लिए

घर को क्यों धाँग रहे इच्छाओं के लँगड़े प्रेत
हमारी संदूक में तो मात्र सुई की नोक भी जीवन

सुना है आसमान ने खोल दिये हैं दरवाजे
पूरा ब्रह्मांड अब हमारे लिए है
चाहें तो सुलगा सकते हैं किसे तारे से अपनी बीड़ी

इतनी दूर पहुँच पाने पर सत्तू नहीं इधर
हमें तो बस थोड़ी और हवा चाहिए कि हिल सके यह क्षण
थोड़ी और छाँह कि बाँध सकें इस क्षण के छोर।

१३ सितंबर २०१०

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