मौन
खामोशी क्या है
परिस्थितियों के आगे आत्मसमर्पण
या भीतर क्रोध का धधकता हुआ उबाल
कहते हैं कि शब्द ब्रह्म है
है जिसकी विशेष ध्वनि
होता है झंकृत जिससे सारा संसार
पर मौन तो वह वीणा है
करती है झंकृत जो अंतर्मन के तार
जब हम ग़ैरों से बातें करते हैं
तो खुद से ही दूर रहते हैं
पर जब हम रहते हैं मौन
तो केवल अपने से बातें करते हैं
मौन तो हमारा सर्वोत्तम मित्र है
क्योंकि इसकी अपनी एक व्याकरण है
विशेष इसकी अपनी एक सरगम है
इसकी अपनी एक भाषा है
इसकी अपनी ही एक परिभाषा है
इसमें तो रंचमात्र भी नहीं दोष है
यह शांत, धीर एवं एक विशाल शब्दकोश है
मौन तो हमारा शक्तिशाली परम मित्र है
क्योंकि उसकी आधारशिला ही सच्चरित्र है
पर हमें मौन तो कदापि भी नहीं भाता
क्योंकि उसे तो सदा सत्य ही बोलना आता
सच तो यह है कि कडुआ मीठा कुछ भी नहीं
क्यों कि सत्य का कोई विकल्प ही नहीं
सत्य तो यह है कि मौन ही सर्वोत्तम तप है
पर यहाँ एक विडंबना भी
बड़ी अजब है
कि हम भूखे रह सकते हैं पर मौन नहीं
हम लड़ सकते हैं पर मौन नहीं
हम लूट सकते हैं पर मौन नहीं
क्योंकि मौन तो वह दर्पण है जो
हमारा ही वास्तविक चेहरा दिखाता है
सुकर्मों एवं कुकर्मों की याद दिलाता है
हम लुट भी गए हम पिट भी गए
भूखे भी रहे प्यासे भी रहे
पर झूठे आडम्बर की इस दुनिया में
निर्विकल्प मौन से दूर रहे
जिस दिन इस दुनिया के मानव को
मौन की भाषा आएगी
कर्म प्रधान इस सृष्टि में असली क्रांति आएगी
क्षणभंगुर जीवन के इस आँगन में
सच्ची सुख और शांति आएगी।
७
अप्रैल २००८
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