अनुभूति में
मणिमोहन मेहता की रचनाएँ-
जुलूस
पिता के जूते
रोशनी
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जुलूस
कई बरस बाद सड़क पर देखा
इतना बड़ा जुलूस
वरना इन दिनों तो
परिदृश्य से बाहर हैं
ऐसे दृश्य...
जीन्स-टी शर्ट पहने लड़के-लड़कियाँ
हाथों में पोस्टर
अँग्रेज़ी में लिखे हुए नारे
हँसते, मुस्कराते, बतियाते
पहली बार निकले हैं
इस तरह सड़कों पर...
नथुनों से टकराती है
परफ्यूम और डिओडरेन्टस की गंध
कितना खुशबूदार जुलूस है यह
रंग खुशबू और जवानी...
मैं देखता हूँ इस जुलूस को
बेहद करीब से
सोचता हूँ शामिल हो जाऊँ इसमें
फिर सोचता हूँ नहीं...
अपने पसीने की गंध से
पहचान लिया जाऊँगा
जुलूस नहीं है यह
यह तो
किसी औद्योगिक घराने की बारात है।
२३ मार्च २००९
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