अनुभूति में
केशव शरण की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
किस्मत ने ऐसा छल किया
पाँव पहिये और सेमल के फूल
बाज, कबूतर और दूसरी चिड़ियाँ
मैं क्यों करूँ स्वीकार
सिर्फ उसके
पत्ते झर रहे थे
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किस्मत ने ऐसा छल
किया
कितने अरमानों
कितनी मेहनत
कितने शौक से
मैंने एक घर बनाया।
नदी के किनारे
उसके ऊँचे कगार पर
अपने प्रकृति प्रेम के चलते
अब गृह-प्रवेश की बारी थी
लेकिन किस्मत ने
ऐसा छल किया
कि रातो-रात नदी ने
दूर से ही
अपना रास्ता बदल लिया।
वापस उन हाथों से पाएँ कैसे
दे दी है
तब मालूम हो रहा है
दे दी है दुनिया
बरबाद करनेवाले हाथों में
असंख्य बेचैन दिनों
अनगिनत अशांत रातों के बाद
हासिल हुई थी
यह स्वप्नमयी दुनिया
बलिदानों से
इतिहास भरा है इसका
तो लूटमारी से
वर्तमान।
इसे लूटमारों से बचाएँ कैसे
वापस उन हाथों से पाएँ कैसे
उनके पास सेना है
और हमारे पास
सिर्फ संविधान।
३ मार्च २०१४
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