सफ़र पर
यह वक्त शब्दों के दीये जलाने का है
कहा एक कवि ने
और मैंने सचमुच एक दीया जलाकर
आँगन में रख दिया
वह लड़ता रहा अंधेरे से
लड़ता रहा आँधियों से
लड़ता रहा एक पूरी रुत से
और धीरे-धीरे
मेरे जिस्म में एकाकार हो गया
अब मेरे हर शब्द में है एक मशाल
और शब्द निकले हैं सफ़र पर।
16 फरवरी 2007
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