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जीना मरना सब लाचारी
नफरत, धोखा और मक्कारी जीना–मरना सब लाचारी।
जिसको हमने पट्टी बांधी, उसने हमको ठोकर मारी।।
लूट ले गये सपने सारे, वोटों के सन्दूकों में।
जिनसे हमको उम्मीदें थीं, निकले नेता सबसे भारी।।
शहर में कफ्र्यू का सन्नाटा, चौराहों पर बिखरा खून।
मन्दिर–मस्जिद की खातिर सब, लड़ने की करते तैय्यारी।।
आगत के स्वागत की रस्में, भूल चुके सब कसमों को।
मेहमानों को चाय पिलाना, लगता है अब क्यों बेकारी।।
मां–बहनों की अस्मत लूटी, अपनों को खल्लास किया।
आदर्शों का 'तेज' मिटा है, धीरज–धर्म–मित्र और नारी।।
८ अक्तूबर २००२
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