अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अपर्णा मनोज की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आओ देखो
एक बार तुम भी
चाहूँ, फिर चाहूँ
जाओ देखो तो
तुम भी बुला लेना मुझे


 

 

 

आओ देखो

आओ देखो तो
आज जो तारीख काटी है
एक बहुत पुरानी होली की है
तुम्हारे हाथ भरे हैं
गुलाबी अबीर से
मुझे गुलाबी पसंद है
तुम्हें नीला
शायद ये कलेंडर मैं फाड़ना भूल गई थी
काफी कुछ बचा रहा इस तरह तुम्हारे -मेरे बीच
एक बार फिर चाहूँ
इस बचे को उलटो-पलटो तुम

२८ मार्च २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter