अनुभूति में
संत सूरदास की
रचनाएँ-
विनय पदों में-
चरण कमल बंदौ हरि राई
मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै
छांड़ि मन हरि-विमुखन को संग।
बाल वर्णन में-
सोभित कर नवनीत लिए
किलकत कान्ह घुटुरूवनि आवत।
जसोदा हरि पालने झुलावै
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझाया
वियोग वर्णन-
मधुकर! स्याम हमारे चोर
अँखियाँ हरि-दरसन की प्यासी
बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं
प्रीति करि काहू सुख न लह्यो
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विनय पद
१
चरण-कमल बंदौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे को सब कुछ दरसाई।।
बहिरौ सुनै मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।
'सूरदास' स्वामी करूणामय, बार-बार बन्दौं तेहि पाई।।
२
मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज़ को पंछी, फिरि जहाज़ पर आवै।।
कमल-नैन कौ छांड़ि महातम, और देव कौ ध्यावै।
परम गंग कौं छांड़ि पियासौ, दुरमति कूप खनावै।।
जिहि मधुकर अंबूज-रस-चाख्यौ, क्यों करील-फल भावै।।
सूरदास प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै।।
३
छांड़ि मन हरि-विमुखन को संग।
जाके संग कुबुधि उपजति है, परत भजन में संग।।
कागहि कहा कपूर चुगाये, स्वान न्हवाये गंग।
खर को कहा अरगजा लेपन, मरकट भूषन अंग।।
पाहन पतित बान नहि भेदत, रीतो करत निषंग।
'सूरदास' खल कारि कामरि, चढ़ै न दूजो रंग।। |