अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

मीराबाई

(१५०४-१५५८)

मीराबाई का जन्म सोलहवीं शताब्दी में, राठौड़ों की मेड़तिया शाखा के प्रवर्तक राव दूदाजी के पुत्र रतनसिंह के यहां हुआ था। बचपन से ही वे कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं। मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से मीरा का ब्याह हुआ था। परंतु थोड़े समय में ही वे विधवा हो गई थीं।  मीरा की कृष्ण-भक्ति न उनके देवरों को पसंद थी, न उसकी सास-ननद को। कहते हैं मीरा को विष दिया गया, सर्प भेजा गया परंतु मीरा बच गई। अंत में मीरा ने मेवाड़ छोड़ दिया और वृंदावन होती हुई द्वारिका गई। वहीं जीवन के अंत तक वे रहीं।

मीरा की कीर्ति का आधार उनके पद हैं। ये पद राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं। हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीरा के पद हमारे देश की अनमोल संपत्ति है। आंसुओं से गीले ये पद गीतिकाव्य के उत्तम नमूने हैं। भावों की सुकुमारता और निराडंबरी सहजशैली की सरसता के कारण मीरा की व्यथासिक्त पदावली बरबस सबको आकर्षित कर लेती हैं। प्रधानत: वह सगुणोपासक थीं तथापि उनके पदों में निर्गुणोपासना का प्रभाव भी यत्र-तत्र मिलता है। आत्म-समर्पण की तल्लीनता से पूर्ण उनके पदों में संगीत की राग-रागिनियां भी घुलमिल गई हैं। दर्द-दीवानी मीरा उन्माद की तीव्रता से भरे अपने कस्र्ण-मधुर पदों के कारण सदैव अमर रहेगी।

 

अनुभूति में मीराबाई की रचनाएँ-

बसौ मोरे नैनन में नंदलाल
नहिं ऐसो जनम बारंबार
भज मन चरण-कंवल अबिनासी
मेरे तो गिरिधर गोपाल
या ब्रज में कछु देख्यो री टोना
संकलन में-
प्रेमगीत- हे री मैं तो

 

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter