अनुभूति में
सुधेश की रचनाएँ-
अंजुमन में-
ऊँची बड़ी सरकार है
कुछ सपने
दोस्ती में दुश्मनी
सारा जगत अब |
' |
सारा जगत अब
सारा जगत अब ग़ाम है
बस आदमी इक नाम है
भाषा कला सब वस्तुएँ
बस बेचना ही काम है
जो वाम दक्षिण सा लगा
जो दाहिना था वाम है
वह रूप हो या प्यार हो
अब तो सभी कुछ चाम है
इन्सानियत अनमोल थी
हर चीज़ का अब दाम है
तब गाँव मानो स्वर्ग था
अब नरक सारा ग़ाम है
सब पुण्य लूटो तीर्थ का
बाज़ार चारों धाम है
सब कुछ स्वचालित है यहाँ
कितना बड़ा आराम है
दिखता कहीं है राम तो
आराम में ही राम है
मंज़िल मरुस्थल की नहर
पग चल रहा अविराम है
८ दिसंबर २०१४ |