अनुभूति में
सिया सचदेव
की रचनाएँ—
अंजुमन में--
काम कुछ ऐसा न कर जाऊँ
ज़िंदगी इस तरह
तजुर्बो ने ये सिखाया है
मैं हिफाज़त से
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तजुर्बों ने ये
सिखाया है
इन तजुर्बो ने ये सिखाया है
ठोकरे खा के इल्म पाया है
क्या हुआ आज कुछ तो बतलाओ
क्यों ये आँसू पलक तक आया है !
दुश्मनों ने तो कुछ लिहाज़ किया
दोस्तों ने बहुत सताया है !
आसमां, ज़िंदगी, जहाँ, हालात
हम को हर एक ने आज़माया है !
अब रुकेंगे तो सिर्फ़ मंजिल पर
सोचकर यह क़दम उठाया है !
ऐ "सिया" हम हैं उस मक़ाम पर आज
धूप है सर पे और न साया है !
२६ सितंबर २०११
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