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अनुभूति में शिवकुमार पराग की रचनाएँ— 

अंजुमन में--
तिनका तिनका
धीरे धीरे आगे बढ़ते जाते
भूख के दृश्य
सीधा सच्चा जीवन

 

धीरे धीरे

धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हम
राजमहल में दहशत भरते जाते हम

शर्तों-अनुबंधों में जीना, क्या जीना
खुली हवा के सपनों से बतियाते हम।

कुहरे-भंवर-थपेड़े, ओले-पत्थर सब
सह जाते हैं मुस्काते-मुस्काते हम।

समझौतों की भाषा सीख न पाया मन
इसे थक गए समझाते-समझाते हम।

इसे हमारी कमी कहा या अच्छाई
राजमुकुट में गीत नहीं जड़ पाते हम।

८ अक्तूबर २०१२

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