क्यों फ़ासिले
क्यों फासिले-से आ गए हैं अब दिलों
के बीच
भरनी हैं कुछ मुहब्बतें इन फासिलों के बीच।
बेकारियाँ हैं मुफलिसी
लाचारियाँ बहुत
ज़िन्दा हैं अपने लोग इन्हीं कातिलों के बीच।
तूफाँ से क्या गिला करें मौजों
से क्या गिला
जिसका सफ़ीना डूब गया साहिलों के बीच।
जलसे, जुलूस, रैलियों में खो
गया जहाँ
तन्हाइयों का ज़िक्र है अब महफ़िलों के बीच।
काँधे पे उसके हाथ रखा तो वो रो
पड़ा
हँसता रहा हमेशा ही जो मुश्किलों के बीच।
१६ दिसंबर २००४
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