अनुभूति में
प्रभा दीक्षित की रचनाएँ—
अंजुमन में—
कभी मुझसे कोई आकर
जाने कितने लोग खो गए
नदी की बाढ़ में
यों भरोसा तो
नहीं
हरी डाल से |
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कभी मुझसे कोई
आकर
कभी मुझसे कोई आकर, अगर घुल-मिल के मिलता है
खयाल आता है दिल में, आदमी मुश्किल से मिलता है।
यहाँ दाने पड़े हैं जाल में इस दुनियादारी के
परिंदा कब समझ पाया कि वो कातिल से मिलता है।
हमारे गाँव के दरिया में जब सैलाब आता है
सहारे डूबने का दर्द भी साहिल से मिलता है।
मोहब्बत करने वाले आग के शोलों पे चलते हैं
जमीं पर उठने वाला हर कदम मंजिल से मिलता है।
वहाँ पर चंद लमहों के लिए जन्नत उतरती है
गजल के हुस्न का जादू जहाँ महफिल से मिलता है!
वफा के नाम पर कुछ इस तरह तस्कीन होती है
जहाँ का दर्द चुपके से ’प्रभा‘ के दिल से मिलता है।
१६ सितंबर २०१३ |