अनुभूति में
मदनमोहन उपेन्द्र
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आप का कैसा मुकद्दर
गम को पीकर
जब से हमने
मौलवी पंडित परेशां
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मौलवी पंडित
परेशां
मौलवी पंडित परेशां आदमी हैवान है
मुल्क में चारों तरफ इंसानियत हैरान है
कागजों के देश का नक़्शा बदलता जा रहा
किस कदर टुकड़ों में बिखरा अपना हिन्दुस्तान है
फासला बढ़ता नज़र आने लगा है किस तरह
फिर नयी इक जंग की खातिर सजा मैदान है
दब रहे आतंक में सब लोग इस्पंजी बने
कैसे कह दें रहनुमा हालात से अनजान है
सरफरोशी की जिन्होंने उनकी यादें रह गयीं
आसनों पर वे हैं जिनकी कुर्सियाँ ईमान हैं
कांपती दीवार उड़ते कलेण्डर बतला रहे
साथियों! इस ओर कोई आ रहा तूफान है
११ जुलाई २०११ |