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अनुभूति में जितेन्द्र जौहर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
इतनी ऊँची उड़ान
खुशामद का मेरे होंठों पे
ठहरा हुआ जलाशय-सा
दौर-ए-हाज़िर

 

ठहरा हुआ जलाशय-सा

ठहरा हुआ जलाशय-सा वो, सपने किन्तु समन्दर जैसे!
बाहर से हलचल-विहीन पर, भीतर एक बवण्डर जैसे!

भित्ति-वक्ष पर टँगा, मर्सिया, मौन स्वरों में बाँच रहा है,
मरी हुई तारीख़ों वाला, जीवन एक कलण्डर जैसे!

वृक्ष ठूँठ-से खड़े सरोवर, बूँद-बूँद को तरस रहे हैं,
ऊपर-ऊपर मेघ समूचे, पी लेता है अम्बर जैसे!

मर्यादाएँ सिसक रहीं, नैतिकता माथा पीट रही है,
राजनीति को नचा रहा है, कलियुग का दशकंधर जैसे।

हम-तुम ‘जौहर’ मौन तमाशा, देख रहे हैं चौरहे पर,
विकृत अनुयायी-मुद्रा में, गाँधी जी के बन्दर जैसे!
 

१३ दिसंबर २०१०

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