अनुभूति में
दुश्यन्त कुमार की रचनाएं-
नई रचनाएँ-
कहाँ तो तय था
कैसे मंजर
खंडहर बचे हुए हैं
जो शहतीर है
ज़िंदगानी का कोई मकसद
कविताओं में -
मुक्तक
अंजुमन में-
आज सड़कों पर
मत कहो
संकलन में-
धूप के पाँव-
कहीं पे धूप
गुच्छे भर अमलतास-विदा
के बाद प्रतीक्षा
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जो शहतीर है
जो शहतीर है पलकों
पे उठा लो यारो
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो
दर्दे-दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारो
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारो
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो
कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो
६ अप्रैल २००९
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