घुटी घुटी सी कोठरी
घुटी घुटी सी कोठरी, नहीं हवा का नाम
नई बहू का जेठ ने, जीना किया हराम
घर के भीतर आग है, घर के बाहर आग
है अंजुम चारों तरफ यही आग का राग
बड़ी तपिश यों हो रहे जीव सभी बेचैन
ऐसे में हड़ताल पर, घर का टेबल फैन
थकी थकी सी बावड़ी, सूखे सूखे घाट
राम बुझाओ प्यास को, जोह रहे हैं बाट
ताल नदी सबको लगा अबके सूखा रोग
दवा कीजिए वैद्य जी, परेशान हैं लोग
पत्ता तक हिलता नहीं, पेड़ खड़े हैं मौन
समाधिस्थ हैं संत जी, इन्हें जगाए कौन
खड़ी जेठ के आँगना नदिया माँगे नीर
दुःशासन सी है तपन, खींच रही है चीर
मिनरल वाटर बेचते सेठ करोड़ीलाल
गंगाबाई खोजती पानी वाला ताल
पानी पानी हो ही चौपायों की चीख
चारे का संकट मिटे चारा रहा न दीख
सूरज लगता माफ़िया हफ़्ता रही वसूल
नदिया काँपे ओढ़कर तन पर तपती धूल |