अनुभूति में
आशीष नैथानी सलिल की रचनाएँ-
अंजुमन में--
ख़ता करके
चन्द सिक्के दिखा रहे हो
पहाड़ों पर सुनामी थी
बेमुनव्वर जिंदगी होने लगी
मुस्कुराना छोड़कर
सहर को सहर
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पहाड़ों पर सुनामी थी
पहाड़ों पर सुनामी थी या था तूफ़ान पानी में
बहे बाज़ार घर-खलिहान और इन्सान पानी में।
बड़ा वीभत्स था मंजर जो देखा रूप गंगा का
किसी तिनके की माफ़िक बह रहा सामान पानी में।
बहुत नाजुक है इन्सानी बदन इसका भरोसा क्या
भरोसा किसपे हो जब डूबते भगवान पानी में।
इधर कुछ तैरती लाशें उधर कुछ टूटते सपने
न जाने लौटकर आएगी कैसे जान पानी में।
बहुत मुश्किल है अपनी आँख के पानी को समझाना
अचानक कैसे हो जाती दफ़न मुस्कान पानी में।
१७ फरवरी २०१४
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