ताल भर
सूरज--
बहुत दिन के बाद
देखा
आज हमने
और चुपके से उठा लाए--
जाल भर सूरज!
दृष्टियों में बिम्ब भर आकाश--
छाती से लगाए
घाट
घास
पलाश!
तट पर खड़ी बेला
निर्वसन
चुपचाप
हाथों से झुकाए--
डाल भर सूरज!
ताल भर सूरज...!
ताल भर सूरज--
बहुत दिन के बाद
देखा
आज हमने
और चुपके से उठा लाए--
जाल भर सूरज!
-- शलभ श्रीराम सिंह