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नदी नाव संजोग
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नदी नाव
संजोग भेंटना
तुम से आज हुआ।
पान-फूल
अँजुरि में लेकर मन में वृंदावन,
आँख जुड़ाये गैल तकें गलियारे
घर आँगन,
बाट पाहुने की जोहे ज्यों
गंगाराम सुआ।
अक्सर लगते
सूनसान चौखट-देहरी तुम बिन,
गहरे सन्नाटे में डूबे थे मेरे
पल-छिन,
तुम आये जैसे अम्बर से
झर-झर झरी दुआ।
पोर-पोर
फगुनाई महकी रस-कचनार खिले,
महुआ-सी गमकी पुरवाई तुम जो
आज मिले,
दर्पण ने दर्पण को जैसे
सहसा आज छुआ।
-- दिवाकर वर्मा |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
दोहों में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
२१
जून २०१० के कमल विशेषांक में
रावेंद्रकुमार
रवि,
कुँवर बेचैन,
गीता पंडित,
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
‘सज्जन’,
ललित
अहलूवालिया 'आतिश'
सुभाष राय
के गीत।
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इंदिरा मिश्रा,
कमला निखुर्पा,
धीरेन्द्र सिंह,
प्रिया सैनी,
मनीषा शुक्ला,
राजेंद्र उपाध्याय,
रामेश्वर कांबोज हिमांशु,
सुभाषिनी खेतरपाल,
सुरेश यादव,
संस्कृता मिश्रा
और
भवानी प्रसाद मिश्र,
की छंदमुक्त रचनाएँ।
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नीलेश माथुर व
संस्कृता मिश्रा
की क्षणिकाएँ,
हरिकृष्ण
सचदेव के
मुक्तक,
भावना कुंअर व
अरविंद चौहान
के हाइकु तथा
संतोष कुमार
सिंह और
अमित कुलश्रेष्ठ
की रचनाएँ।
अन्य पुराने अंक |
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