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उड़ती है पार-द्वार
धूप की चिरैया।
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पानी के
दर्पण में,
बिंब नया उभरा,
बिखर गया
दूर-पास, एक-एक कतरा।
पलकों-सी मार गई
धूप की चिरैया।
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पूरब में
कुंकुम का,
थाल सजा-सँवरा,
किरणों-सी दुलहन का,
रूप और निखरा।
आँगना गई बुहार
धूप की चिरैया।
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यहाँ-वहाँ,
इधर-उधर,
फुदक-फुदक नाचे,
सुख-दुख की आँखों के,
शब्दों को बाँचे।
रोज़ पढ़े समाचार
धूप की चिरैया।
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-डॉ.
तारादत्त निर्विरोध
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