झीणा भाई देसाई
`स्नेह रश्मि'
के हाइकु
|
|
हाइकु
कुहुक ध्वनि
रात जाग देखूँ तो
बारी में चन्द्र।
आँधी में थकी
हवा सहज लेटी
फूल शय्या में।
छप्पर चुए
भीगे गोदी में शिशु
माँ के आँसू से।
खाली झोंपड़े
दोनों तट निरखे
नदी की बाढ़।
मछुआ डाले
जाल, फँसे न पूनो
किसी भी भांति।
बादल अब
गरजें न बरसें
रंगोली पूरें।
छितरा नीड़
आतुर लेने गोद
बिखरे पत्ते।
१४ जनवरी २००८
|