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24. 12. 2007  

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भीगी भीगी भारी रात

भीगी-भीगी भारी रात,
नींद न आती सारी रात!

घोर अंधेरा चारों ओर
दूर अभी तो लोहित भोर
थमा हुआ है
सारा शोर
ऐसे मौसम में
चुप क्यों हो,
कहो न कोई मन की बात!
भीगी-भीगी भारी रात

कुहरा बरस रहा चुपचाप
अतिशय उतरा नभ का ताप
व्योम-धरा का
मौन मिलाप
ऐसे लमहों में
पास रहो,
थर-थर काँपेगा हिम गात!
भीगी-भीगी भारी रात

नीरवता का मात्र प्रसार
तरुदल हिलते खेतों पार
जब-तब
बज उठते हैं द्वार
खोल गवाक्ष
न झाँको बाहर,
मादक पवन लगाए घात!
भीगी-भीगी भारी रात

--महेंद्र भटनागर

 

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