जिसके भाई सभी पहलवानी करें
उससे हम क्यों भला छेड़खानी करें
जिसके भाई सभी पहलवानी करें
माना उससे कोई ख़ूबसूरत नही
है कोई दिल कि जिसमें वो मूरत नहीं
पसलियाँ एक हो जाएँ जिस प्यार में
मुझको उस प्यार की अब ज़रूरत नहीं
उसपे क़ुर्बान क्यों ये जवानी करें...
जिसके भाई...
हाथ पैरों से मोहताज़ हो जाऊँ मैं
एक टूटा हुआ साज़ हो जाऊँ मैं
इश्क़ के इस झमेले में क्यों ख़ामख़ा
आई एम से आई वाज़ हो जाऊँ
मैं मुफ़्त में क्यों फ़ना ज़िंदगानी करें...
जिसके भाई...
क्यों कहूँ झूठ मैं उनसे डरता नहीं
ऐसी हिम्मत का दावा मैं करता नहीं
उसके भाई कहीं ना मुझे देख लें
उस मोहल्ले से भी मैं ग़ुज़रता नहीं
उनके जूते मेरी मान-हानी करें...
जिसके भाई...
जिस पे ख़तरा हो उसपे क्यों ट्राई करें
सबसे पिटते फिरें जग हँसाई करें
उसके भाई जो ठोकें सो ठोकें मगर
राह चलते भी मेरी ठुकाई करें
अपनी काया से क्यों बे-ईमानी करें...
जिसके भाई...
बात करने का भी है नहीं हौसला
बेहतरी है सुरक्षित रखें फ़ासला
भाइयों कि पिटाई झिलेगी नहीं
बस यही सोच के कर लिया फ़ैसला
ख़त्म अपनी यहीं पर कहानी करें...
जिसके भाई...
24 दिसंबर 2007
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