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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

बूँदों के सरगम पर

कंधों पर
सावनी अकास लिए
आज कहीं ये बादल बरसेंगे।

बरसेंगे-
खेतों में धान-पान बरसेंगे
बंजर में
हरियाली की उड़ान बरसेंगे
हाथों की मेहंदी में
पाँव के महावर में
कोमल इच्छाओं के आसमान बरसेंगे

पुरवा का
शीतल वातास लिए
प्यास तपे हर मन को परसेंगे।

तीज और कजली के
स्नेह-पत्र लाएँगे
बूँदों के सरगम पर
ये मल्हार गाएँगे
कितनी ही उज्जयिनी
कितनी अलकाओं में
घूम-घूम बिरहिन के घर-आँगन जाएँगे

संदेशे
आम और ख़ास लिए
सबको हरषाएँगे, हरषेंगे।

-डॉ राधेश्याम शुक्ल
25 सितंबर 2005

  

श्वेतवर्ण कोमल बादल

ओ श्वेतवर्ण कोमल बादल,
मन को भावन तेरा स्वरूप,
तेरी घुमड़न की मधुर छटा,
कर देती हिय में अचल वास।

ओ दीप्तिमान गतिमान रूप,
है क्षणभंगुर तेरा स्वरूप,
रंग-बिरंग तेरा शरीर,
करता कवि मन को है अधीर।

संपूर्ण गगन तेरा गुलाम,
करता उस पर तू मुक्त चाल,
खुद सूर्य, चाँद, तारे अनंत,
को ढक देता तू है महान।

ओ बादल तेरा श्वेत अपार,
सागर-सा है तू अति विशाल,
हो उठा कवि तुझ पे कायल,
है स्वर्ग-सा तेरा विलास।

सूर्य जब नभ में ज्वलंत हो,
चमचमाता गर्व से भर,
खिन्न कर देता उसे तू,
शैल-सा चादर बिछाकर।

- अजय कुमार "गुंजन"
25 अगस्त 2005

उमस भरा सावन
(दो हाइकु)

चाहा था मैने
रस भीगा मौसम
न कि उमस

झूलें क्या झूला
सावन का मौसम
आग बबूला

- केशव शरण
25 अगस्त 2005

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