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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल संकलन

काले बादल

कहाँ से आए बादल काले?
कजरारे मतवाले!

शूल भरा जग, धूल भरा नभ, झुलसीं देख दिशाएँ निष्प्रभ,
सागर में क्या सो न सके यह करूणा के रखवाले?
आँसू का तन, विद्युत का मन, प्राणों में वरदानों का प्रण,
धीर पदों से छोड़ चले घर, दुख-पाथेय सँभाले!

लाँघ क्षितिज की अंतिम दहली, भेंट ज्वाल की बेला पहली,
जलते पथ को स्नेह पिला पग-पग पर दीपक वाले!
गर्जन में मधु-लय भर बोले, झंझा पर निधियाँ घर डोले,
आँसू बन उतरे तृण-कण ने मुस्कानों में पाले!

नामों में बाँधे सब सपने रूपों में भर स्पंदन अपने
रंगो के ताने बाने में बीते क्षण बुन डाले
वह जडता हीरों मे डाली यह भरती मोती से थाली
नभ कहता नयनों में बस रज बहती प्राण समा ले!

- महादेवी वर्मा
31 अगस्त 2001

  

बादल

आए बादल आए।

उमड़-घुमड़ आए बादल
घनघोर घटा कर के बादल
गरज-गरज कर बतलाएँ
संग अपने बारिश लाए।

बादल गरजो अब घड़-घड़
बिजली चमको अब कड़-कड़
पानी बरसो अब तड़-तड़
बारिश की झड़ लग जाए।

हम पर यह उपकार करो
धरती का तुम शृंगार करो
खेतो में लहराए फसल
धरती की प्यास बुझ जाए।

तुझ पर पूरा विश्वास किए
हम राह तकें तेरी आस लिए
बरसो अब ऐसे तुम जमकर
तन-मन अपना तर जाए।

- आशुतोष शर्मा
24 अगस्त 2005

 

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