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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

बाढ़

आप जनाब
कीजिए हवाई सर्वेक्षण
शीशे के पीछे से

हमारी स्थिति का लीजिए जायज़ा
दूरबीन आँखों से सटाए

डूब रहे हाथ पैरों को देखिए
तैरते केले के पेड़ -
उस पर सवार हमें देखिए

अंदाज़ा लगाइए बाढ़ की विभीषिका का
और लौट जाइए दिल्ली

संसद में ऊँची आवाज़ में
कीजिए घोषणा -
कुछ करोड़ दुबारा बसाने के
और कुछ मरने के बाद बचे हुओं को मुआवज़ा।

बाढ़ में रुपए पहले भींगते हैं
भारी होते हैं
और फिर डूब जाते हैं!

- भास्कर चौधुरी
9 सितंबर 2001

  

बारिश

मुझे बारिशों से प्रेम है
यह प्रेम संदेश लाती हैं
तन मन का मैल धोती हैं
दुख दूर कर सुख लाती हैं
धरा के हृदय की-
ज्वाला शांत करती हैं
धरती पुत्रों को जीवनदान देती हैं
सर्वत्र हरियाली का संदेश देती हैं
और प्रेमी मेघदूत देख कर
प्रसन्न होते हैं

एक रोज़ बारिश आई थी
निर्मम निरंतर बारिश
सर्वत्र अँधेरा सर्वत्र नीर
देखने से लगे मानो यही है क्षीर
सब कुछ बहा ले गई वह बारिश
पेड़-पौधे ढोर-डंगर सब
उन्हें भी जो
बारिश का स्वागत करते थे
नाच गा कर मन में उमंग भरते थे

यह बारिश सब बहा ले गई
तुम्हें भी!
अब मुझे बारिशों से घृणा है
इसका काम सिर्फ़ बहाना है
इसमें भीगने का जो रस है
वह मात्र एक छलावा है
इसके चले जाने पर
हाथ कुछ नहीं आता है
कपड़ों के साथ मन भी
निचुड़ जाता है
रह जाती है तो सिर्फ़ एक टीस
एक मिलन की
एक खालीपन की।

- नितिन रस्तोगी
30 अगस्त 2001