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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

भीगा दिन

भीगा दिन
पश्चिमी तटों में उतर चुका है,
बादल-ढकी रात आती है
धूल-भरी दीपक की लौ पर
मंद पग धर।

गीली राहें धीरे-धीरे सूनी होतीं
जिन पर बोझल पहियों के लंबे निशान है
माथे पर की सोच-भरी रेखाओं जैसे।

पानी-रँगी दिवालों पर
सूने राही की छाया पड़ती
पैरों के धीमे स्वर मर जाते हैं
अनजानी उदास दूरी में।

सील-भरी फुहार-डूबी चलती पुरवाई
बिछुड़न की रातों को ठंडी-ठंडी करती
खोये-खोये लुटे हुए खाली कमरे में
गूँज रहीं पिछले रंगीन मिलन की यादें
नींद-भरे आलिंगन में चूड़ी की खिसलन
मीठे अधरों की वे धीमी-धीमी बातें।

ओले-सी ठंडी बरसात अकेली जाती
दूर-दूर तक
भीगी रात घनी होती हैं
पथ की म्लान लालटेनों पर
पानी की बूँदें
लंबी लकीर बन चू चलती हैं
जिन के बोझल उजियाले के आस-पास
सिमट-सिमट कर
सूनापन है गहरा पड़ता,

-दूर देश का आँसू-धुला उदास वह मुखड़ा-
याद-भरा मन खो जाता है
चलने की दूरी तक आती हुई
थकी आहट में मिल कर।

- गिरिजा कुमार माथुर
07 सितंबर 2001

  

सावन आयो रे

सावन आयो रे, आयो रे,
सावन आयो रे।
उमड़-घुमड़ कर कारी बदरिया
जल बरसायो रे।।

मेंहदी वाला रंग रचाकर
सखियां झूला झूलें
पांव की पायल कहती है
कि उड़ते बादल छू लें
पीउ-पीउ कर के पपिहा ने
शोर मचायो रे,
सावन आयो रे।

सर-सर-सर-सर उड़े चुनरिया
हवा चले सन-सन-सन
रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी
भीगे गोरिया का तन
सब सखियन ने मिलकर
राग मल्हार सुनायो रे,
सावन आयो रे।।

बहका-बहका मौसम है
ऋत पिया मिलन की आई
सब सखियाँ मिल तीज मनावें
हरियाली है छाई
जिसके पिया परदेस बसे
चिठिया भिजवायो रे,
सावन आयो रे।

सुनील जोगी
16 सितंबर 2003

अनोखा अहसास

ये बारिश की बूँदें
इतना शोर क्यों मचा रही हैं?
या किसी के दिल का
हाल सुना रहीं हैं?
अहसास जो कह ना पाए कोई,
इतना ही पावन और शीतल है,
जो मन में तूफ़ान मचा रहा है,
इन्हीं बारिश की बूँदों की तरह,
वो भी बरसाना चाहता है
पर बरस ना पता है,
गर बरसेगा तो
ऐसे ही ज़ोर से बरसेगा,
शोर मचाएगा,  और अंत में
खुशी भी पाएगा!!

- आस्था
27 अगस्त 2001