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        सावन की शोखियाँ

 
 
वो पाँव रख रहे हैं जल पर सँभल सँभल के,
मुख चूमने को आतुर पानी उछल-उछल के

है डर यही जमाना
वाचाल हो न जाये
यह चाल कामिनी की
किसको नहीं लुभाए
हँसते अधर हों जैसे द्रुम-दल खिले कमल के
वो पाँव रख रहे हैं जल पर सँभल सँभल के

सावन की शोखियाँ हैं
खुशियों के रंग सारे
तन तरबतर न कर दें
बौछार, ये फुहारे
नीयत में खोट झलके,क्या खूब छलके - छलके
वो पाँव रख रहे हैं जल पर सँभल सँभल के

आँगन में ढूँढ़ते जो
आकाश के नजारे
आँखों में ले समन्दर
हैं खोजते किनारे
अब हो गए हैं दर्पण इस रूप के महल के
वो पाँव रख रहे हैं जल पर सँभल सँभल के

त्योहार से दिवस हैं
रजनी हुई उजेरी
घन केश पाश श्यामल
नभ की घटा घनेरी
बिजली गिरा रहे हैं पारी बदल- बदल के
वो पाँव रख रहे हैं जल पर सँभल सँभल के

- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
१ अगस्त २०२५

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