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         बरखा मलती मरहम

 
 
धरती ने पाई
बादल की आहट
झूमी हवा

हीरे के मनके
तारों पे लटके
हौले से छेड़ा
धरती पे खनके
पानी की लड़ियाँ
चहक रही चिड़ियाँ
देती दुआ
झूमी हवा

बूँदों की छम-छम
नदियों की सरगम
कड़क रही बिजुरी
चमक रही घम-घम
मन के तानों की
तन के प्राणों की
जीवन दवा
झूमी हवा

कुछ बूँदे निगोड़ी
समंदर में दौड़ी
लहरों से मिलकर
सहम गईं थोड़ी
रूँधे स्वर बोली
खोये हमजोली
मौका गँवा
झूमीं हवा

-त्रिलोचना कौर 'तनु'
१ अगस्त २०२५

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