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         कहाँ से आए बदरा

 
 
कहाँ से आए बदरा कारे
धरती के छोरे बजमारे
कभी पिघलते, कभी निगलते
बिजली के कट्टे ले-ले कर

तेज हवाओं की टोली में
दाखिल होते और निकलते
सूरज से ले लेते पंगा
आपस ही में और धरा से
करते छापामार लड़ाई
पर्वत पर चहुँ ओर चढ़ाई
धाँय-धाँय हिंसक घटनाएँ!
साँय-साँय कुछ गरम हवाएँ!
इस मौसम में गरज रहे हैं
टूट पड़े हैं आफत बनकर

टूट, गरज घायल होते घन!
लम्बी यात्रा, छोटे जीवन!
फिर क्यों ये घूमिल हो जाते
गले लगाते, लिपटे जाते
आ जाते जब हरिअर वन में
क्या आता है उनके मन में?
घर की यादों में खो जाते
टहनी टहनी ये सो जाते
विस्थापन का ताप समेटे
अम्बर के खुल्ले दलान पर

- शार्दुला नोगजा
१ अगस्त २०२५

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