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         क्या गजब के दृश्य

 
 
क्या ग़ज़ब के
दृश्य हैं सारे

बादलों की कनातें तनने लगी हैं
ढोलकें कसने लगी हैं बिजलियाँ
हवायें यों व्यस्त सी दिख रही हैं ज्यों
ब्याहनी हैं इन्हें
कितनी बेटियां

वृक्ष शाखों को हिला कर कह रहे
आरे अरे आरे

एक कच्ची नाव ले उम्मीद पक्की
तालियों के संग ऐसे बह रही
गाँव की इक बावली ज्यों हील पहने
गिरी रे मैं गिरी हँस हँस कह रही
और उससे भी जियादा
खिलखिला कर
हँस रहे धारे

उधर है गुलज़ार की दो पंक्तियों सी
ज़रा सूखी ज़रा गीली कहानी
एक छतरी तेज बारिश दो दिवाने
एक नटखट इक लजीली कहानी
नज़र इनको लग न जाये
सुन रे बादल
दिठौना ला रे

लग रही ऐसे सड़क रंगीन जैसे
सौ कली के घाघरे में झूमती
धुनी बंजारन चली हो छनन छन छन
भूल दुनिया मगन घूमर घूमती
तोड़ना मत ताल इसकी
दूर हट चल-चल
परे जा रे

- सीमा अग्रवाल
१ अगस्त २०२५

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