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         बूँदों से सोम झरे

 
 
सावन की रिमझिम फुहार
बूँदों से सोम झरे
बदली जैसे- आसमान से
भू पर होम करे

झाँज-मँजीरे पर्ण बने हैं
टिमकी छत-छानी
राई-कजरी गाकर थिरके
ऋतुओं की रानी
अपनी बाहों में वसुधा को
फिर से व्योम भरे

लड़कों जैसा- घर का पानी
खेले खोर-गली
झर-झर की अनुगूँज बदलकर
छुक-छुक रेल चली
पाँव-पाँव में चलकर बचपन
पत्थर मोम करे
देहरी से परछी तक संध्या
दिन के लेख पढ़े
शीश महल की खिड़की खुलकर
अपने अर्थ गढ़े
अँखुवाये बीजों के मुख से
निकले ओम हरे

- रामकिशोर दाहिया
१ अगस्त २०२५

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