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         बादल आए हैं

 
 
जलनिधि की पाती लेकर
बादल आए हैं

अँकुराई आशाएँ नदियों की
आँखें भर आई।
छत पर अविरल गूँज रही है
बूंदों की शहनाई
घट भर
दौड़ दौड़ कर
दल के दल आए हैं

महक उठी खेतों की माटी
उपवन उत्सव छाया
हुलसा मन प्यासी धरती का
वन-अंचल हरियाया
घर आँगन
गली-गली
शुभ-मंगल लाए हैं

बहुत दूर से हमसे मिलने
ये बूंदे आई हैं
बाहर से भीतर तक सुधियों की
निधियाँ लाई हैं
मन भीगे
तन भीगे
ऐसे पल आए हैं

-रघुवीर शर्मा
१ अगस्त २०२५

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