अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर


         पानी बरसा

 
 
पानी बरसा सूने रस्ते
खेल रहे दो बच्चे

खुली सड़क पर दौड़ रहे हैं
ढेरों खुशियाँ जोड़ रहे हैं
छप्पक छप्पक पानी की वे
फुलझड़ियाँ सी छोड़ रहे हैं
मस्ती में
डूबे हैं रस्ते
खेल रहे दो बच्चे

सुलभ सुरक्षा के बाने है
हाथों में छाते ताने हैं
देखो आती कार है पीछे
लेकिन दोनो, अनजाने हैं
सावधान कर
देंगे रस्ते
खेल रहे दो बच्चे

धुले पेड़ सब हरियाली है
हवा शुद्ध है मतवाली है
तारों में बूँदें अटकी हैं
बाकी सड़कों पर छिटकी हैं
नहा नहाकर
गीले रस्ते
खेल रहे दो बच्चे

मौसम है कौतुक मनमाना
जी भर इसको जी कर जाना
साथ साथ बहती धारा में
कागज की इक नाव बहाना
बचपन याद
कर रहे रस्ते
खेल रहे दो बच्चे

- पूर्णिमा वर्मन
१ अगस्त २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter