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यह पावस अमृत हो जाए |
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धरती के भींगे अंतर में,
नव-स्नेह अंकुरित हो पाए
और बूंद बूंद नभ कोरों पर, गीतों की छटा उमड़ जाए
तुम बरसा दो नव रस कण में, वह प्रेम गुंजरित हो जाए
यह पावस अमृत हो जाए
तुम मेघ दूत बन आ जाओ, मेरा संसार बुलाता है
रिमझिम बूंदों की तान लिए, पावस हास बुलाता है
तुम छू लो मन के तार आज,जीवन का राग संवर जाए
यह पावस अमृत हो जाए
शूलोंसे बिंध कर भी खिलती, कोमल गुलाब की कलिकाएँ
संघर्षों में भी पलती है, दुर्गम राहों पर लतिकाएँ
तुम बनो बाँसुरी कान्हा की, मधुबन की प्रीत मुखर गाए
यह पावस अमृत हो जाए
गीतों के कोमल स्वर लय पर, मेरी कविता के भाव बनो
अंतर में पलती प्रीति मधुर, तुम रसवंती जल-धार बनो
बूँदों के संग बिखर जाओ
यह पावस अमृत हो जाए
- पद्मा मिश्रा
१ अगस्त २०२५ |
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