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       सावन ऐसा बरसे

 
 
सावन ऐसा बरसे, तन सरसे मन हरसे,
सावन ऐसा बरसे

झरर-झरर झर झड़ी लगी है, आँगन- मोती बिखरे
सौंधी गंध उठी माटी से, रूप धरा का निखरे
तड़-तड़ तड़-तड़, गिरे बिजुरिया,
काँपें चिड़ियाँ डर से
सावन ऐसा बरसे

मेघ ढमाढम बजे ढोल-से, राग मल्हार सुनाते
हुई लबालब सारी झीलें, पानी-पानी गाते
तट बंधों को तोड़ें नदियाँ
खेतों में जल परसे
सावन ऐसा बरसे

झर झर निर्झर झरे वेग से पर्वत, खाड़ी, वन में
सृष्टि रचाने वाली किसने प्यास जगा दी मन में
मन की तड़पन सही न जाए
मन तड़पे तन तरसे
सावन ऐसा बरसे


फर फर फर हवा चले तो काँपे कुटिया छानी
इस मौसम में आग लगाकर मानेगा यह पानी
महलों से किलकारी फूटी
अश्रु गिरे छप्पर से
सावन ऐसा बरसे

- मनोज जैन मधुर
१ अगस्त २०२५

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