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         डरे लोग हैं

 
 
कहीं तो बरसे
बादल इतने
घर से बेघर हुए लोग हैं

बर्तन-भाँडे बक्सा मचिया
साथ न ला पाए हैं खटिया
बड़े जतन से बनी झोपड़ी
पड़ा छोड़ना सिल और चकिया
सपनों को
काँधे पर लादे
गाँव छोड़ चल पड़े लोग हैं

यूँ तो बहुत याचना की थी
खेतों में अमरित बरसाते
रिमझिम बूँदों की फुहार से
तृषित मनों को तुम हर्षाते
पर इस विपुल
आपदा से तो
घबराए और डरे लोग हैं

घुटनों ऊपर पानी आया
चुन्नू को काँधे बैठाया
काँख में साधे‌ है मुन्नी को
इंदर ने है कोप दिखाया
देव तरस तुम
कुछ तो खाओ
अर्थबिना अधमरे लोग हैं

- डॉ. मंजु लता श्रीवास्तव
१ अगस्त २०२५

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