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         सावन की ऋतु फिर से आई

 
 
सावन की ऋतु फिर से आयी, आजा साजन पास
तेरी छवि बूँदों में छायी, पावस करे उदास

पावस की ऋतु है मतवाली, लगती दुनिया खास
महक रहे हैं धरती - अंबर, आए तन को रास
सपनों में झूमे है सावन, प्रेम करे परिहास
तेरी छवि बूँदों में छायी, पावस करे उदास

जलचर थलचर मिलने आतुर, दादुर करते शोर
कब आओगे मेरे मधुकर, उर में नाचे मोर
रिमझिम-रिमझिम बरखा बरसे, जगी मिलन की आस
तेरी छवि बूँदों में छायी, मन को करे उदास

छम-छम करती बरखा पायल, गाए गीत समीर
करे बिजुरिया मन को घायल, तन-मन उमड़े पीर
झर-झर झरी व्यथा बादल की, रचे विरह इतिहास
तेरी छवि बूँदों में छायी, पावस करे उदास

आग लगाए बरखा रानी, बरसे दृग से नीर
धोए आँगन आँसू पानी, मेघ रहा जग चीर
धड़कन में तेरी धुन बजती, मन में जागी प्यास
तेरी छवि बूँदों में छायी, पावस करे उदास

- डॉ मंजु गुप्ता
१ अगस्त २०२५

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