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        मत सोचो

 
 
मत सोचो
मत सोचो बादल आयेंगे

आसमान तक पहुँच चुका है
धरती का कोहराम
सागर के खारेपन ने
है जीवन किया हराम
जैसे-तैसे आज बिताकर
कल सब दुखड़ा ही पायेंगे
मत सोचो बादल आयेंगे

तोते पिंजड़े छोड़ उड़ेंगे
घर में होंगे बाज
हंस कैद में बँध तड़पेंगे
बगुले भोगें राज
कोयल के स्वर कुंठित होंगे
काग सुहानी धुन गायेंगे
मत सोचो बादल आयेंगे

छाँव-गाँव की धूप वरेगी
सूखेंगे वट- नीम
सड़कें पहुँचेंगी जंगल तक
होंगे गिद्ध यतीम
वसुधा के गर्वीले सपने
छितरा कर मुँह की खायेंगे
मत सोचो बादल आयेंगे

- कल्पना मनोरमा
१ अगस्त २०२५

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