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         कई बरस के बाद

 
 
कई बरस के बाद बदरबा ऐसे बरसे
दर्शन होते नहीं भास्कर के अम्बर से

उफन रहे हैं ताल तलैया पोखर सारे
गर्वीली नदिया बहती है तोड़ किनारे
जल भराव दिखता है चारो ओर नगर में
धीरे धीरे टूट रहे पर्वत बेचारे
मुश्किल है ऐसे में आना
बाहर घर से

खेत और खलियान हो गए पानी पानी
बैठे हैं बेकार हुई बरबाद किसानी
बरबादी को देख रहे हैं बूढे काका
झर झर झर झर बरस रहा आँखों से पानी
गुजर कर रहे कर्जा लेकर
इधर उधर से

हुई सयानी शादी लायक घर में बिटिया
लड़के वाले माँगें भारी भरकम रुपिया
कैसे पीले हाथ करेंगे अब बिटिया के
घर में भूँजी भाँग नहीं है फूटी लुटिया
साहूकार तकादा करता
है ऊपर से

- दिनेश 'विकल'
१ अगस्त २०२५

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