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         मंगल गाए मेह

 
 
मंगल गाए मेह झिमिर-झिम
झरने लगी फुहार

हाँफते पारा पखेरू जल रहा था जल
धाँधली यह देख दौड़ी बूँद की दमकल
पत्ते-बूटे, गुल, गुलशन सब
भीग-भीग गुलजार

मखमली झलमल धरा के पाँव हैं भारी
कल जनेगी शोख अँखुए लोक हितकारी
दिन बहुरेंगे धनखेतों के
होंगे मंगलचार

कल तलक सबसे कटा था वीतरागी मन
बँट रहा वह ख्वाब सिल पर प्रेम का ऐपन
कारगुजारी यह मौसम की
मन के पंख हजार

- अनामिका सिंह
१ अगस्त २०२५

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