 |
बूँदें हुईं गिटार |
|
आशाओं की पोटली, लिए मेघ
अवधूत।
इधर-उधर मँडरा रहे, बने खुशी के दूत।।
गुस्से में इस सूर्य का, खून रहा था खौल
बादल ने भी तान ली, पानी की पिस्तौल।
बादल गरजे और फिर, बूँदें हुईं गिटार।
शिव-डमरू से बज उठे, घर की छत-दीवार।।
ढूँढ़ लिया अपने लिए, दिनभर का एकांत।
सुनी मेघ की गर्जना, हुआ सूर्य भी शांत।।
झींगुरों के गीत पर, दादुर देते दाद।
मेघ धरा से कर रहे, बूँदों से संवाद।।
सूरज को छुट्टी मिली, हमें मिला आराम।
हमने भी यह दिन लिखा, बादल तेरे नाम।।
बादल ने जब थाम ली, बूँदों सजी गिटार।
एक साथ गाने लगे, सारे मेघ-मल्हार।।
सूरज का पारा गिरा, गिरी धरा पर बूँद।
मन कत्थक करता रहा, दिनभर आँखे मूँद।।
सजी अल्पना द्वार पर, दर्पण हुआ जवान।
बादल के संग आ गए, विरहिन के श्रीमान।।
नदियों में चलने लगे, खुशियों के जलयान।
हुआ एक बरसात में, मौसम मगही पान।।
आसमान की सीट पर, हुए मेघ आसीन।
बरसे, खेतों में सजी, पानी की कालीन।।
-
सत्यशीलराम त्रिपाठी
१ अगस्त २०२५ |
|
|
|
|