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        सावन मगही पान

 
 
बादल थे कुछ अनमने, मौसम से थी रार।
धरती ने छेड़ी ग़ज़ल, झरने लगी फुहार।।

रिमझिम बारिश में खिला, धरती पर उल्लास।
आह्लादित हो प्रकृति भी, रचा रही है रास।।

आसमान से आज फिर,बरस रहा है नूर।
रफ्ता-रफ्ता हो रही, तपन धरा की दूर।।

पायल-सी बूँदें बजीं, नभ ने छेड़ी ताल।
खिलकर धरती ने किये, फिर सोलह शृंगार।।

बरसा सावन झूमकर, ठंडी चली बयार।
छोटी-सी नदिया बही, गली-गली हर द्वार।।

बारिश की बूँदें करें, सन्नाटे में शोर।
बहकी-बहकी है पवन, मन में नाचे मोर।।

समय नया, बारिश वही, हुआ मगर बदलाव।
नज़र कहीं आती नहीं, अब कागज़ की नाव।।

थोड़ी-सी बारिश हुई, शहर बन गया ताल।
पानी-पानी हो गये, दफ्तर-होटल-मॉल।।

सर्दी का मौसम रहे, या गरमी-बरसात।
राम-राम करते कटें, निर्धन के दिन-रात।।

नहीं दिखें झूले कहीं, दिखे नहीं उल्लास।
सावन भी वैसा लगे, जैसे बारह मास।।

सर्दी में गरमी पड़े, गरमी में बरसात।
जानें कैसे हो गये, मौसम के हालात।।

-सुबोध श्रीवास्तव
१ अगस्त २०२५

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