अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर


        बादल बरसे नेह के

 
 

सूरज छुट्टी पर गया, मेघ हुए सिरमौर।
शेष बचे बरसात में, तीन-चार दिन और।।

बादल बरसे नेह के, आज सुबह से ख़ूब।
चैटिंग में हमने पढ़ा, तुम मेरे महबूब।।

बरसो बादल झूम कर, आँख मिचौनी छोड़।
धरती साजन से कहे, उम्मीदें मत तोड़।।

पानी-पानी हो गया, भावों का अतिरेक।
वर्षा ने हँसकर किया, बादल का अभिषेक।।

धरा गुलाबी हो गयी, चर्चा है हर ओर।
आज शरारत फिर हुई, छुआ व्योम ने छोर।।

इधर 'फेसबुक' में किया, वर्षा ने अनफ्रेंड।
उधर टॉप पर कर रहा, मेघ 'एक्स' पर ट्रेंड।।

बारिश की अठखेलियाँ, किसे न आतीं रास।
आज धरा से गगन तक, फैली मधुर सुवास।।

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'
१ अगस्त २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter