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        बूँदों के नूपुर

 
 

अम्बर चमके दामिनी रिमझिम पड़े फुहार
हरे - हरे सपने उगे धरा हुई गुलजार

घर आँगन सब भीगता भीग रहा देहात
सोंधी माटी की महक गमक उठे दिन-रात

करते छई-छपाक छप नन्हें बाल गोपाल
देख-देख उनकी खुशी भर जाते हैं ताल

सावन के झूले पड़े गाँव शहर वन बाग
मिल-जुल झूला झूलतीं सखियाँ गाती राग

मोहक सावन की झड़ी छेड़े मन के तार
चुपके से साजन करें मीठी एक मनुहार

पुरवाई के साथ में बादल आता देख
धरती हर्षित हो उठी फैली सुख की रेख

घर आँगन में गूँजता बूँदों का संगीत
दादी बैठी खाट पर गाती मीठे गीत

सुरमई मेघ दे गए गुड़धानी खुशहाल
खुशियों से सजने लगी गाँवों की चौपाल

धूप से तपते गाँव में जलतरंग सी धार
बूँदों के नूपुर बने हँसी- खुशी का सार।

-पारुल तोमर
१ अगस्त २०२५

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