छिड़के वर्षा धरा पर, जब भी पहली
बूंद।
मिट्टी की सोंधी महक, मोहें आँखें मूंद।।
वर्षा की बूँदें हमें, देती जीवन दान।
प्राणदायि संजीवनी, जीवजंतु की जान।।
सुख दुख में सहयोग दे,आपस में जब प्यार।
तप्त धरा की पीर को, हरती वर्षा धार।।
लेन देन विनिमय प्रथा, सिखलाए व्यवहार।
प्यासा सूरज जल पिए, दे वर्षा उपहार।।
वर्षा लाती संग में,खुशियों के त्योहार।
तीज मनाती नारियां, कजरी संग मल्हार।।
रिमझिम बूंदें बरसती,दूर करें सब ताप।
गर्म पकोड़े साथ हों,चाय उड़ाए भाप।।
घेवर बर्फी की महक,ललचाए हिय खूब।
पकवानों की विविधता,में मन जाता डूब।।
वर्षा गिरती वृक्ष पर, स्वागत
डाली बाँह।
पत्ते झूमें ताल दें, भीगे तन मन राह।।
बच्चों की खुशियाँ बढ़ीं, आँगन बना तलाव।
मिल कर तुरत बना रहे, कागज की वो नाव।।
सुख समृद्धि वरदान दे, वर्षा बहुत महान।
पर्यावरण रक्षा करे, सारी सृष्टि समान।।
मानव जब शोषण करे, क्रोधित होती वृष्टि।
फटते बादल हृदय तब, प्रलय डूबती सृष्टि।।
- ज्योतिर्मयी पंत
१ अगस्त २०२५