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चलें घूमने |
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वर्षा की ऋतु लगे सुहानी,
चलें घूमने
करने बचपन-सी मनमानी, चलें घूमने
आज सुबह से वर्षा रानी, रहीं बरसती
दिखती धरा चतुर्दिश धानी, चलें घूमने
पुष्प, लतायें, पात प्रफुल्लित, भरे सरोवर
मेघों ने है चादर तानी, चलें घूमने
नन्हे बच्चे भरें कुलाँचें, गलियों-गलियों
हरित छटा, खेतों का पानी, चले घूमने
कहीं दिखें नौकाएँ चलती, कहीं सपेरे
लिपे-पुते घर, छप्पर-छानी, चलें घूमने
कहीं ओज आल्हा का दिखता, कहीं कीर्तन
किसलय धरा हुई दीवानी, चलें घूमने
- आचार्य विजय तिवारी 'किसलय'
१ अगस्त २०२५ |
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