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         बरसात

 
 
झोली बूँदों से, भर गयी होगी
देख ! बारिश से, डर गयी होगी

कल थी क़स्बे में, लोग कहते हैं
आज फिर से, शहर गयी होगी

धूप दिन भर में, थक भी जाती है
ठँडी छाँव में, ठहर गयी होगी

शहर, क़स्बे व गाँव में भटकी
थी तो लड़की ही, घर गयी होगी

जो थी वो झील, सूखी प्यासी सी
अब तो पानी से, भर गयी होगी

वो जो तट की, उदास किश्ती थी
हँस के जल में, उतर गयी होगी

गीले कपड़ों से, कल का वादा था
धूप आज फिर, मुकर गयी होगी

झाँक कर, भोर की खिड़कियों से
देख बादल, सिहर गयी होगी

ये अचानक से, बूँद की झड़ियाँ
धूप कपड़ों से, तर गयी होगी

धूप भी तो, हमारी अपनी है
आँख उसकी भी, भर गयी होगी

- कृष्ण भारतीय
१ अगस्त २०२५

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